Wednesday 26 September 2012

मेंढक ख़ुशी और आहुती

आज बारिश से एक मेंढक आया,
खुश हो गया नयी धरती, वोही पुराना आसमा पाया ,
खिलते हुए सोचे की थोड़ी माचिस ले आउ, दाल रोटी संग खीर राबड़ी पकाऊ,
जलाने गया कोई कोयला, तोह वाहा कोई कौभांड छिपा था,
सफ़ेद दूध की डेरी  में भी काला पोलिटिक्स छिपा था .

मेंढक बोला द्राऊ।।।द्राऊ ..बारिश पानी और जंगल  में में खुश था,
खुश था मेई  वो छोटे कुए में,
डूब कर् जी तोह मेरा भरता था,
यहाँ तोह बस चका चौन शरीर है,
हर आत्मा पर कला बट्टा लगा है,
 हर खून असिड से भीगा रहता
 न कोई जी रहा है यहाँ,  सब है जैसे zombie के है नाती
सब में एक शैतान जमा उधार रहता .
शायद शैतान भी इन्हें इस्ट माने, या पूजा थाल चढाते।

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