Wednesday 11 July 2012

Lotus FEET

ज्ञान में विजय की है ये गाथा,
सच्चे भक्त की जय और श्रद्धा की ये है पराकाष्टा

है दीन दुखिया, ये ब्रह्मण, बिताये जीवन के अंधियारे
फिर भी संतुष्ट है अपने जीवन निर्वाह से,
कोई फिक्र नहीं कल के इश्वर से
ना निंदा वाक्य, न निससों का थाल
और वैसी ही है उसकी पत्नी सुहासिनी बेमिसाल।
अपने पति के राग में राग मिलाये,
उसके हर्ष में अपने दुखों के रंग भुनाए।

इस ब्रह्मण के पास है एक भेस,
पर है वान्ज़ और नहीं कुछ काम की,जैसे कोई पाड़ा है ऐठ।
कभी ज़रूरत लगी तो लोग उसे ले जाते, पत्थर रेती उससे धुअते,
नाक में वेसण दीलाके, मजदूरी उससे कर्वाते

शायद दिन बदले ब्रह्मण के , और फिर बदले सितारे इस सृष्टी के,
आये एक महात्मा योगी
या फिर है येही है सारे संसार  जगत के स्वामी।
है सुवर्ण तेज़ इनके मुख-मंडल पे,
है छठा दिव्य इनके इर्द-गिर्द में।
हाथ में दंड लिए है स्वामी, कहे की भक्तों की रक्षा के हेतु ये दंड है स्वामी।
पीताम्बर वस्त्र सुख मंडल शांत, नमन मेरा तेरे चरणों में मेरे स्वामी।

वैशाख महिना था और गरम ऋतू,
धरती ताप के बन रही थी जैसे आज अभी जलु।
सूर्य आज कुछ ज्यादा ही तेज़ था, अंधकार को भस्म करने शायद आज भस्म विस्फोटक था।
देखा गुरु ने इस ब्रह्मण का घर और मांगी भिक्षा मृदु स्वर कर।
ब्रह्मण नहीं है - गए है भिक्षा लाने, तब तक आप आइए - भीतर बैठिये यहाँ सिरहाने।
कह के ब्रह्मण पत्नी ने - ब्रह्म को भाग्य में बिठाया।
कह के ब्रह्मण पत्नी ने - साक्षाद अमृत को निवास करवाया,
खुले इसके भाग्य द्वार सारे विश्व ने वंदन किया।

पर आज गुरु बहोत थके है, भूके सूर्य से तपे है,
कहे की माई - आज क्यों अपने बेटे को तदपाई,
भिक्षा आज क्यों न  दे -भूख और गर्मी ने तद्पाया -
आज तुने भी अपने बेटे से छाव हटाई।
घर में एक भैस है, थोडा दे उसका दूध पिला,
ठण्ड प्यास तृप्त हो जाऊ मै , बस आज इतनी है इच्छा।

माई कहे क्षमा करना मेरे स्वामी, वान्ज़ है ये भेस, रेडा है ये भेस,
ना दे ये दूध, बस काम करे जैसे कोई मजदूर
नसीब पे एक अभिशाप है ये भेस।
जूठ न बोलो, ओ  माई , मुझे अच्छा फ़साना ओ माई,
तेरी बातों में न आऊंगा,ले कटोरा और निकल दूध,
आज तो भिक्षा होके ही जाऊंगा।

 शायद  जगत-वन्द्य के हाथों में कुछ रहस्य होगा,या फिर इनके शब्दों में आशीर्वचन होगा,
ये सोच ,लिया कटोरा, निकले दूध इस वान्ज़ भेस का,
और क्या आशार्य है, कही कोई दिन में दो -सूर्य है
या सरे चन्द्रमा -सितारे  सारे करतब निखारने है।
दूध से प्याला भर गया, थोडा गर्म करके फ़रमाया  - श्री गुरु का मनन तृप्त  किया ,
जगत-वन्द्य स्वामी ने दिया आशीर्वाद - पने चरण स्पर्श से दिया घर को लक्मी जी का प्रसाद।

दूर हुए तुम्हारे दुःख -दारिद्र
आज से मेरे भक्त को सुखमय ऐश्वर्य।
और प्रस्थान किये अपने मठ की और।

श्री नरसिंह सरस्वती स्वामी थे वो जगत-वन्द्य
शत शत प्रणाम ऐसे गुरु को
छु कर उनके चरण आराध्य।


( the Glimpse  of Shri Guru on the path of Truth..)

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